आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए जो प्रामाणिक स्रोत है वो तीन है , श्रुति, स्मृति और ब्रह्मसूत्र |
श्रुति -वेद को बोलते हैं । वेदों को ऋषियों ने अपने ध्यान और तप से प्राप्त किया भगवान से| इसमें चार वेद आते हैं|
स्मृति – उन ग्रंथों को बोलते हैं जो ऋषियों ने लिखा है| इसमें भगवत गीता आता है| वेदों को ऋषियों ने भगवान से प्राप्त किया है किंतु इस को खुद ऋषियों ने लिखा है| इसमें वेदों के ज्ञान को बहुत विस्तार से बताया गया है| वेदों में जो ज्ञान हैं उसको इसमें बहुत आसान तरीके से बताया गया है|
ब्रह्मसूत्र - इसको भी ऋषियों ने लिखा है | इसमें तर्क के द्वारा वेदों के ज्ञान को ही समझाया गया है| जो महत्वपूर्ण सूत्र है वह ब्रह्म सूत्र है इसको व्यास आचार्य जी ने लिखा है |
इन तीनों को प्रस्थानत्रय बोलते हैं |प्रस्थान का अर्थ हुआ ज्ञान प्राप्त करने का तरीका और त्रय का अर्थ हुआ तीन | आत्मज्ञान के यह मूलभूत तीन स्रोत है |
ज्ञान का एक चौथा परत भी है जिसको प्रकरण बोलते हैं | हमारी परंपरा में बहुत सारे प्रकरण ग्रंथ लिखे गए हैं| बहुत सारे आचार्यों ने इनको लिखा है| शंकराचार्य जी है उन्होंने कई प्रकरण ग्रंथ लिखे हैं| उनके शिष्य हैं सुरेश्वर आचार्य जी उन्होंने भी कई ग्रंथ लिखे हैं| विद्यारण्य स्वामी जी ने भी कई ग्रंथ लिखे हैं| प्रकरण ग्रंथ में वेदों के ही ज्ञान को बहुत आसान तरीके से बताया गया| तत्व बोध इसी प्रकरण ग्रंथ के अंतर्गत आता है|
तत्व बोध एक छोटा सा ग्रन्थ है जिसमे हमारे शास्त्रों में प्रयोग होने वाले तकनिकी शब्दों की परिभाषा दि हुई है | सामान्यतः जब कोई वेदान्त के ज्ञान में प्रवेश करता है तो सबसे पहले इस ग्रन्थ का अध्ययन जरूर करता है | जब आप श्रीमद्भगवद्गीता , उपनिषद् , ब्रह्मसूत्र के अध्ययन में प्रवेश करेंगे तो ये ग्रन्थ आपकी सहायता करता है | जब आप किसी परंपरा वाले गुरु के आश्रम में वेदांत का ज्ञान प्राप्त करने जाएंगे तो वह सबसे पहले बोलेंगे कि तत्वबोध ग्रंथ को आप अच्छी तरीके से कंठस्थ कर ले| पूरे ग्रंथ को याद करने के लिए बोला जाता है| इस ग्रंथ को अच्छी तरीके से याद कर लेने से जब भी आगे किसी ग्रंथ में इन शब्दों का वर्णन आता है तो हम को मन में तुरंत याद आ जाता है कि इसका क्या परिभाषा है| इस तरीके से हमको इस ज्ञान को समझने में सहायता मिलती है|